दोस्तों भारत को पिछले काफी समय से पुरुष प्रधान देश कहा जाता है परंतु अब यह धीरे धीरे महिला प्रधान देश बनता जा रहा है, क्योंकि आज के समय में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले भारत का नाम अधिक रोशन कर रही हैं और गोल्ड मेडल, सिल्वर मेडल जैसे पदकों पर अपना कब्जा कर भारत देश के लिए ला रही हैं। जहां महिलाएं अपनी शादी के बाद अपने घर गृहस्थी को संभालना उनके लिए मुश्किल हो जाती हैं वहीं दूसरी ओर भारत के कई अलग-अलग राज्यों में रहने वाली महिलाओं ने अपने भारत देश के लिए ओलंपिक खेलों में भाग लेकर कई सारे पदक प्राप्त किए हैं। आइए आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी शादी के बाद घर गृहस्थी को संभालते हुए और दुसरो के घरो में कामकाज करते हुए भारत के लिए विश्व रेसिंग चैंपियनशिप का खिताब प्राप्त किया है।
घरो में काम करने वाली महिला बसंती ने वर्ल्ड रेसिंग चैंपियनशिप में किया क्वॉलिफाई।
Maid Basanti qualifie world running championship हम बात कर रहे है तिरुचिरापुल्लि जिले के तुरैयुर की रहने वाली 36 वर्षीय बसंती की जिनके परिवार में दो बच्चे हैं। जिनकी उम्र 14 वर्ष और 16 वर्ष की है और उनका पति आनंद जो प्राइवेट कंपनी में बस ड्राइवर के पद पर कार्यरत हैं।
घरो में काम करके किया गुजारा।
उनका कहना है कि यदि उनसे 2 साल पहले किसी ने यह सवाल किया होता की वह अपने आने वाली जिंदगी में क्या करेंगी तो उनका उत्तर हमेशा की तरह होता यदि उनको कहीं भी अच्छा कार्य मिल जाए तो वह अपना और अपने परिवार का पालन पोषण ठीक प्रकार से कर सकती।
जी हां कुछ साल पहले तक उनकी जिंदगी में काफी परेशानी थी। वह कोयम्बटूर में 3-4 घरों में काम करने के अलावा एक छोटे रेस्टोरेंट में भी काम किया करती हैं उनका काम रेस्टोरेंट में खाना बनाने का होता था। उन्होने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की उन्हें कभी इंडिया का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलेगा।
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दि न्यूजमिनट की रिपोर्ट के अनुसार तिरुचिरापल्ली जिले के तुरैयुर में जन्मीं बसंती आज से करीब 10 साल पहले नौकरी की तलाश में कोयम्बटूर आई। उनके पति यहाँ पर एक बस ड्राइवर के तौर पर काम करने लगे परन्तु घर का खर्च सही तरह से नहीं चल पा रहा था। तब बसंती ने घरो में डोमेस्टिक वर्कर की तरह कामकाज किया।
उन्हें रेस प्रतियोगिता के बारे में पता चला।
लेकिन सन 2017 में बसंती की किस्मत चमकी। जब उनको एक रेस प्रतियोगिता के बारे में पता चला जो की उनके इलाके के पास हो रही थी। उनके पति ने उनको सोशल मीडिया पर एक मैसेज दिखाते हुए पूछा क्या वो इस कम्पटीशन में भाग लेना चाहती है। इस रेस में जितने वालों को अच्छी रकम मिलेगी ऐसा सोच कर उन्होंने रेस में भाग लिया।
इसके बाद वह जेनेसिस फाउंडेशन द्वारा चलाये जा रहे प्रोग्राम के ट्रेनर वैरवन से मिली, जो की उनके दोनों बच्चो के कोच भी थे। उनके दोनो बच्चे 14 और 16 साल, दोनों ही जेनेसिस फाउंडेशन के समर कैंप का हिस्सा थे। बसंती ने कोच को अपनी इच्छा बताई। कोच ने बताया की जब बसंती उनके पास आई और अपनी परेशानी को बताया तो उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए राजी हो गए।
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प्रतियोगिता में भाग लेकर जीत हासिल की।
बसंती ने 15 दिन की ट्रेनिंग ली और ट्रेनिंग के दौरान वह समर कैंप का हिस्सा भी बनी। इसके बाद उन्होंने कम्प्टीशियन में भाग लिया और 10,000 रुपये की इनामी राशि भी जीती। इसके बाद इन्होने अपने घर के कामो से समय निकलकर ट्रेनिंग करने लगी और अपना पूरा ध्यान ट्रेनिंग पर केंद्रित कर दिया।
इन्होने डिस्ट्रिक्ट मीटर में भी हिस्सा लिया वहा 5000 मीटर और 1500 मीटर इवेंट में भी विजयी रही। इससे वह राज्य स्तर की कम्पटीसन में क्वॉलिफाई कर गई। हैरत की बात है की एक ऐसी महिला जिसने कभी दौड़ नहीं लगाई हो वो आज हर प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही थी और बखूबी जीत भी रही थी।
इसके बाद उन्होंने राज्य स्तर के दौड़ प्रतियोगिता जो कि 800 मीटर, 1500 मीटर, 500 मीटर की थी उसमें भाग लेकर व जीतकर स्वर्ण पदक को अपने नाम लिया। गोल्ड मेडल जीतते ही वह स्पेन में होने वाले वर्ल्ड चैंपियनशिप की लिए क्वॉलिफाई हो गई थी।
मेहनत के बल पर आगे बढ़ती गई।
उसके बाद उनका अधिकतर समय जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में ट्रेनिंग पर ही निकल जाता था। वह रोज सुबह 5 बजे उठाकर स्टेडियम में 2 घंटे तक दौड़ने का अभ्यास करती रहती थी। वह सुबह शाम अपनी प्रैक्टिस पर पूरा ध्यान देती है। उनको अपने कोच और घर परिवार से पूरा सहयोग मिलता ताकि वह और आगे जा सके और देश का नाम रोशन कर सके। इन्हीं सब समय के तालमेल को बनाए रखते हुए वह ट्रेनिंग और घर पर पूरा समय दे रही है।
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हमारे देश में बसंती जैसी कई महिलाएं हैं जिन्होंने भारत का नाम सभी देशों के बीच ऊंचा किया है। बसंती घर की सभी परेशानियों से जूझते हुए वह अपनी ट्रेनिंग पर पूरा ध्यान देती हैं।
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