भारतीय रेलवे ने कुछ वर्षों से एक अनोखी पहल की शुरुआत की है जिसमें बचे हुए गन्ने के रेशों से बनी प्लेटो का उपयोग किया जाता है, जिससे भारत में काफी हद तक पर्यावरण को प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। रेल मंत्रालय ने विश्व पर्यावरण दिवस 5 June, 2018 के मौके पर यह बताया कि इंडियन रेलवे इसकी शुरुआत शताब्दी और राजधानी ट्रेन में कर चुकी है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को डिब्बा बंद भोजन दिया जायेगा जो कि यह डिब्बे गन्ने के अवशेषों (रेशों) से बने होंगे और यह पूरी तरह से पर्यावरण के लिए सुरक्षित होंगे।
(क्लीन सिटी-क्लीन इंडिया) अनोखी पहल रेलवे में गन्ने के अवशेषों से बनी प्लेटो का होगा उपयोग।
railway use cane residues plates इस पहल के साथ IRCTC ने “क्लीन सिटी-क्लीन इंडिया” के तहत भारत को हानिकारक प्लास्टिक और पॉलिथीन से बचाने की पुष्टि की है। रेलवे की यह योजना दिल्ली से शुरुआत कर जल्द ही इसे पूरे भारत में लागू कर दिया जायेगा।
Clean City-Clean India
रेलवे ने बताया कि यदि हमारा ये “Clean City-Clean India” का प्रोजेक्ट कारगार सावित होता है तो रेलवे जल्द ही ये प्रोजेक्ट पूरे देश में लागू कर देगी। इस प्रोजेक्ट में बताया गया कि लोग अक्सर प्लास्टिक के बने डिस्पोजल का उपयोग करते हैं जिससे रेलवे स्टेशनों, पटरियों ( ट्रैकों) और अन्य जगहों के साथ साथ पर्यावरण भी प्रदूषित होता हैँ।
प्लास्टिकों को किसी भी तरह से ना तो गलाया जा सकता है और ना ही ये जमीन में अवशोषित होती है। इन्हीं सब कारणों की वजह से रेलवे ने डिब्बाबंद भोजन बिक्री हेतु दिए जाने के बारे में बताया गया है कि डब्बों को गन्ने के अवशेषों (रेशों) से तैयार किया जा रहा है।
रेलवे ने कहा कि इस प्रोजेक्ट के द्वारा हम गन्ने के अवशेषों (रेशों) से बने डिस्पोजल बनाकर पर्यावरण के अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया है। रेल मंत्री के अनुसार जल्द ही और सभी ट्रेनों और सावर्जनिक परिवहन मैं भी इस तरह के प्रभावी प्रोजेक्ट लागू कर दिये जायेंगे।
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रेलवे की इको-फ्रेंडली योजना
इसमें सर्वप्रथम गैर जैविक और ऐसे पदार्थ जिसका रीसाइक्लिंग ना हो उसके आधार पर डिब्बा बंद भोजन जो कि बचे हुए गन्ने के रेशों से बनी हुई हैं को आम जनता मैं वितरित किया जाएगा। जिससे पूरे भारत में स्वच्छता आएगी और साथ ही रेलवे और समाज में प्लास्टिक की गंदगी काफी हद तक कम होगी।
पूरे भारत में ऐसी पहल की शुरुआत रेलवे ने राजधानी, शताब्दी और दुरंतो में लागू करने की योजना बना रखी है। इंडियन रेलवे ने प्लास्टिक से बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने के विचार से इस योजना की पहल की है।
यह योजना 17 से 25 सितंबर 2016 में लागू की गई, इस इको-फ्रेंडली योजना से पूरे भारत में रेलवे ने इस योजना की शुरुवात कर दी गई है। अब प्रत्येक राजधानी व शताब्दी जैसी ट्रेनों में यात्रा करने वाले लोगों को गन्ने के रेशों से बनी हुई प्लेटो मैं डिब्बा बंद भोजन दिया जाएगा।
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गन्ने के अवशेषों से होने वाले लाभ :-
railway use cane residues plates
- देश के प्रत्येक रेलवे स्टेशनों और अन्य जगहों पर इस तरह के पर्यावरण के अनुकूल प्लेटों के उपयोग से गन्दगी व कचरा कम होगा जिससे देश में बीमारियों में काफी हद तक कमी आयेगी। जहां प्लास्टिक कई सालों तक गल नहीं पाता और वहीं पड़ा सड़ता रहता है, वहीं गन्ने के अवशेषों से बनी प्लेटें कुछ ही समय में गल जाता है।
- इस तरह के प्रोजेक्ट के द्वारा गन्ने के कचरे का सदुपयोग होता है, जिससे प्लास्टिक का निर्वारण होता है जो की आज के समय में मनुष्य के लिए ज़हर बन चुकी है।
- गन्ने के अवशेषों से बनी डिस्पोजल, प्लास्टिक के डिस्पोजल के मुकाबले काफी मजबूत, टिकाऊ और दिखने में काफी आर्कषक होते हैं।
- किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
- गन्ने के अवशेषों से बनी रह डिस्पोजल बनाने के कारखाने के द्वारा कई लोगों को रोजगार मिलेगा और देश में बेरोजगारी की समस्या कम होगी।
- इस तरह के प्रोजेक्ट के द्वारा रेलवे को काफी मुनाफा होगा और साथ ही सभी यात्रियों के स्वास्थ्य सही रहेगा और हमारा आने वाला भविष्य भी सुरक्षित रहेगा।(railway use cane residues plates)
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