“हैदराबाद के एक जोड़ें स्वाति और विजय ने अपनी चित्रकारी के माध्यम से स्कूलों में कम होते बच्चो की समस्या को गंभिरता से लेते हुए इस परेशानी से उबरने के लिए इन्होने विचार किया की यदि बच्चो को पेंटिंग से जोड़ा जाए तो शायद बच्चो का स्कूल की और रुख करवा सकते है और इनकी यह सोच बिलकुल सही निकली।”
Swati Vijay Reducing Dropout Rate of Students
Swati Vijay Reducing Dropout Rate of Students आज के दौर में गरीबो और निम्न कोटि के मध्यम वर्ग के परिवारों में शिक्षा के प्रति कोई जागरूकता नहीं है। जिससे बच्चों का भविष्य बर्बाद होता जा रहा है या यूं कह सकते हैं की शिक्षा में बढ़ती महंगाई के प्रति लोग अपने बच्चों को शिक्षित नहीं कर पाते।
ऐसा अधिकतर ग्रामीण इलाकों में होता है और जो जागरूक होते हैं वह किसी तरह से अपने बच्चों को पढ़ा पाते हैं। इन्ही कारणों की वजह से स्कूलों में बच्चो की संख्या में लगातार कमी होती जा रही है।
स्वाति और विजय का अनोखा तरीका।
हैदराबाद के एक जोड़ें स्वाति और विजय ने अपनी चित्रकारी के माध्यम से स्कूलों में कम होते बच्चो की समस्या को गंभिरता से लेते हुए इस परेशानी से से उबरने का विचार किया। ये दोनो युवा जोड़े हैदराबाद की सड़को और दीवारों पर अनोखी पेंटिंग्स बनाने के लिए मशहूर है।
इन्होने विचार किया की यदि बच्चो को पेंटिंग से जोड़ा जाए तो शायद बच्चो का स्कूल की और रुख करवा सकते है। इन्होने ऐसे स्कूलों को चुनना शुरू किया जहा बच्चो की संख्या लगातार कम होती जा रही है।
इन सब से पहले आप दोनों खेती में होने वाली समस्याओ को कम करने के लिए एक ग्रुप से जुड़े हुए थे। इस ग्रुप का उद्देश्य किसान को अच्छी फसल और ज्यादा अनाज की पैदावार को बढ़ाना था।
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सरकारी स्कूलों की स्थिति काफी ख़राब
इन्होने सन 2016 में एक न्यूज़ पेपर के आर्टिकल में पढ़ा की तेलंगाना में करीबन 2,000 सरकारी स्कूलों में बच्चो की संख्या मात्र नाम मात्र की रह गई है। जिसका मुख्य कारण बच्चो का स्कूलो में मन न लगना था और परिवार में शिक्षा के प्रति जाररुकता न होना था।
बस फिर क्या था यही से उन्होंने इस विषय में थोड़ा बदलाव करने की कोशिश में जुट गए। इस विषय पर थोड़ा और स्टडी करने और वहा स्कूलों में जाकर पता करने में जो नतीजे सामने आये वह काफी डराने वाले थे।
सरकारी स्कूलों की स्थिति काफी ख़राब थी। काफी रिसर्च और विचार करने के बाद उन्होंने तय किया की वह सरकारी स्कूलों की दीवारों पर ऐसे पेंटिंग्स बनाएंगे जिससे बच्चे उन चित्रों की और आकर्षित हो और उनका रुख स्कूलों की और हो।
स्कूल की दीवारों पर की 3D चित्रकारी।
इसके लिए उन्होंने सबसे पहले वारंगल के रंगासियायेट गांव में स्थित एक स्कूल को चुना जहां कुल बच्चों की संख्या मात्र 15 बची थी। उस स्कूल में जाकर उन्होंने वहां की दीवारों को अपने 3D चित्रकारी के माध्यम से परिवर्तन कर दिया। यह काफी मेहनत भरा काम था परन्तु उनके साहस के आगे परेशानियाँ छोटी पड़ गई।
उन्होंने हर बच्चे से वहां पर चित्रकारी करवाई और वहां बच्चों के फोटो खींच कर उन सभी के चित्र भी दीवारों पर बनाये। यह सभी चित्र बच्चो के लिए काफी आकर्षक थे। जिससे बच्चों का रुझान स्कूल और पेंटिंग की तरफ भी होने लगा और वहा बच्चे खेल खेल में पढ़ाई के प्रति आकर्षित होने लगे।
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ड्रॉपआउट की संख्या में रूकावट
इससे बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े बूढ़े व्यक्ति भी शिक्षा के प्रति जागरुक हो रहे थे और अपने अपने घरों से बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल में भेज रहे थे, जिससे स्कूलों में ड्रॉपआउट की बढ़ती संख्या में लगभग फर्क पड़ने लगा। इस जोड़े और इनकी पेंटिंग के माध्यम से बच्चे स्कूलों में जुड़ने लगे और हर बच्चा मनोरंजन के साथ पढ़ाई करने के लिए स्कूल आने लगा।
स्कूल में बच्चो की संख्या दुगनी
स्वाति और विजय बताते है उन्हें एक स्कूल में पेंट करने में तकरीबन 10 दिन का समय लगता है और उनके अनुसार स्कूल में पेंटिंग की वजह से स्कूल में बच्चो की संख्या दुगनी हुई है और आस पास के सभी गांवो से भी बच्चे अपना दाखिला उस स्कूल में करवा रहे है।
बताया जा रहा है कि स्वाति और विजय शिक्षा की प्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए उन्होंने हैदराबाद की सड़कों पर अपनी पेंटिंग के माध्यम से और स्कूलों में की गई चित्रकारी व शिक्षा संबंधित वाक्य दीवारों पर लिखकर सभी को जागरूक करते थे।
पेंटिंग और शिक्षा के स्लोगन से सभी का ध्यान आकर्षित किया।
स्वाति और विजय दोनों ने जब तेलंगना के ग्रामीण इलाकों के स्कूलों मैं जा कर देखा कि उन स्कूलों में गिने-चुने ही बच्चे आते थे। जो बच्चे स्कूल में आते हैं वे या तो स्कूलों के गंदे होने की वजह से भाग जाते थे या फिर उनका ध्यान पढ़ाई की तरफ नहीं होता।
तब उनके द्वारा बनाए गए चित्रकारी के माध्यम से अभिवावकों को शिक्षा के प्रति जागृत करने का निर्णय लिया। ड्रॉपआउट से पीड़ित स्कूलों में वह स्कूलों की दीवारों को मनमोहक रंगो से पेंटिंग कर के और शिक्षा के स्लोगन को लिख बच्चो को आकर्षित करते है।
स्कूल ड्राप आउट में लड़कियों की संख्या बहुत ज्यादा
स्वाति के अनुसार जब उन्हें तेलंगना के ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में जाकर पता किया, तो उन्हें यह जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ की इन स्कूलों में लड़कियों की ड्राप आउट की संख्या बहुत ज्यादा थी। जो अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़ देती थी।
इसके लिए उन्होंने उन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को और जो बच्चे स्कूल नहीं आ पाते, दोनों ही कैटेगरी के बच्चों को चित्रकारी और फोटोग्राफी करने के मौका दिये जिस वजह से चित्रकारी के साथ-साथ पढ़ाई मैं लगाव बना रहे। जब बच्चे अपने स्कूल की दीवारों में अपने चित्र बना रहे थे तो वे काफी उत्साहित हुए और स्कूल के प्रति जागरूक होने लगे।
वर्ष 2017 में उन्होंने अपने चित्रकारी के द्वारा संगरेड्डी के नारायणखेड़ मैं स्थित बोधि स्कूल (जो की इनका दूसरा प्रोजेक्ट था) मैं चित्रकारी करने की जिम्मेदारी ली |
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स्कूल की ईमारत पर अनोखी चित्रकारी
विजय ने कहा कि उन्होंने सबसे पहले स्कूल के फ्रंट फेस को चुना जहां उसे एक किताब का रुप दिया गया जिसमें से अक्षरों और वर्णमालाओं की वर्षा से बच्चे मस्ती से नहा रहे हो। बता दें कि उनका ये काम स्कूल की अलग अलग बिल्डिंग के मुताबिक तय करते है और यह काम गर्मियों की छुट्टियों में होता है, जिसकी वजह से बच्चों का दाखिला अधिक से अधिक होता है।
और ध्यान देने वाली बात यह है की इन सभी प्रोजेक्टों को यह खुद अपने ही पैसो से कर रहे थे।
उनका तीसरा प्रोजेक्ट खम्मम में स्थित गवर्नमेंट प्राइमरी स्कूल का है। इस स्कूल में एक खेल के मैदान के साथ साथ 6-7 कमरे हैं, जिन्हें क्लासरूम का रूप दिया गया है।
Swati Vijay Reducing Dropout Rate of Students, उन्होंने उन सभी क्लास रूम में कई तरह की कविताएं, अच्छे विचार, आैर मैथ के सूत्र लिखें तथा वहां के वाशरूम में एक बच्चे का साबुन के द्वारा हाथ धोते हुए दिखाया गया है। स्वाति का कहना है कि उन्होंने जहां भी ऐसी चित्रकारी की है जो देखने में सुंदर और आकर्षित लगने के साथ-साथ कोई ना कोई मैसेज भी दे। इस प्रोजेक्ट में इन दोनों के 40,000 रुपये लगे थे।
एक अनोखी तरकीब।
हमारे देश में बच्चों को शिक्षित करने के लिए स्वाति और विजय दोनों ने मिलकर एक अनोखी तरकीब निकाली है, जो काफी हद तक कारागार सिद्ध हुई है। जो बच्चे किसी कारण से सरकारी स्कूल में अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोड़ देते हैं या स्कूल नहीं जाते हैं तो स्वाति और विजय इस जोड़े की चित्रकारी के माध्यम से धीरे धीरे वह बच्चे भी अपनी पढ़ाई और स्कूल की तरफ रुझान बढ़ाने लगे है।
क्योंकि इन्होंने बच्चों को चित्रकारी का और खेलने का मौका तो दिया ही है साथ ही अपने स्कूल से वापस जुड़ने का मौका भी मिला है। अब ये बच्चे खुद को स्कूल का हिस्सा मानने लगे है।
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आस पास के गांव के माँ-बाप खुद अपने बच्चो को स्कूलों से जोड़ने के लिए ला रहे है। इससे बच्चों का भविष्य सवरने लगा और सरकारी स्कूल में ड्रॉप आउट की समस्या भी काफी हद तक कम होने लगी है। Reducing Dropout Rate of Students.