दोस्तों आज हम एक ऐसे शख्स के बारे में बात करेंगे जो दृष्टिहीन होते हुए भी 50 करोड़ के टर्नओवर करने वाली कंपनी के ब्लाइंड सीईओ हैं। यह बात सुनने पर कुछ लोगों को यकीन नहीं होगा कि एक नेत्रहीन युवक एक कंपनी के सीईओ हो सकते हैं पर यह बात एकदम सौ प्रतिशत सच है।
द ब्लाइंड मैन स्टोरी, अमेरिका की नौकरी न कर इंडिया में दे रहा नौकरी।
The blind man Srikanth made a 50 million turnover company Bolet Industries हम बात कर रहे हैं एक ऐसे शख्स की जो नेत्रहीन होते हुए भी अपनी जिंदगी में समय-समय पर उन्हें कई मुश्किलों और कठिनाइयों से सामना करते हुए सफलता प्राप्त कर की। यहां शख्स आंध्र प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में जन्मे श्रीकांत बोला है। जिनका बचपन मुसीबतों और कठिनाइयों के साथ बीता।
संघर्ष की दास्तां।
श्रीकांत बताते हैं कि वह जन्म के समय पर ही नेत्रहीन थे। जब श्रीकांत का जन्म हुआ तब उनको नेत्रहीन देख कर आस-पास के रिश्तेदारों ने उनके माता-पिता को उसे किसी अनाथालय में दान करने या जान से मारने की सलाह दी क्योंकि वह अंधे थे और उनके माता पिता के बुढ़ापे पर उन पर ही बोझ बनेगे। परंतु उनके माता-पिता ने अपने रिश्तेदारों और समाज की बातों को नजरअंदाज करके उनकी परवरिश अच्छे तरीके से की और उनके लिए बेहतर शिक्षा की भी व्यवस्था करवाई।
स्कूली जीवन में कठिनाई।
समय कब बीता पता ही नहीं चला जब वे थोड़े बड़े हो गए तब अपने पिता जो कि एक किसान थे उनके साथ खेत में मदद करने के लिए जाया करते थे। परंतु पर वहां पर अपने पिता की ठीक प्रकार से मदद नहीं कर पाते थे। जिस वजह से उनके पिता उसके भविष्य के प्रति चिंतित रहते थे। फिर उन्होंने सोचा यह खेती बाड़ी का काम ठीक प्रकार से नहीं कर पाता, हो सकता है पढ़ाई में अच्छा निकल जाए। अपने ही इसी सोच के द्वारा उन्होंने उनका दाखिला अपने ही गांव के 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्राइमरी स्कूल में करवा दिया।
स्कूल में दाखिला हो जाने के बाद वे रोज 2 सालों तक अपने घर से लेकर स्कूल 5 किलोमीटर तक पैदल सफर तय करके जाते थे। यह बताते हैं कि उनकी उपस्थिति स्कूल में नहीं मानी जाती थी। स्कूल के अध्यापक और बच्चों के मुकाबले उन पर कम ध्यान देते थे और उनसे किसी भी प्रकार के सवाल जवाब की उम्मीद नहीं करते थे। कभी-कभी उन्हें कक्षा के आखरी बेंच में बैठा दिया जाता था। जब कि वह पढ़ने में काफी होशियार थे। वह भाग दौड़ में अच्छे होने के बावजूद भी उन्हें पीटी की कक्षा से बाहर कर दिया जाता था। कोई भी छात्र और अध्यापक उनके साथ नहीं खेलते थे।
नेत्रहीन बच्चों के खास विद्यालय में दाखिला।
एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने यह सोचा कि वह इस दुनिया में एकदम अकेले पड़ गए है। बता दें कि श्रीकांत को बचपन से ही पढ़ने का काफी शौक था। इसी वजह से वह हमेशा अव्वल आते थे। कुछ समय बाद ही उन्होंने अपने माता पिता को स्कूल में हो रही उनके साथ परेशानी के बारे में बताया तब उनके पिताजी ने उनकी बात को समझते हुए वहां से निकाल कर एक नेत्रहीन बच्चों के खास विद्यालय में दाखिला करवा दिया।
उन्होंने कुछ समय बाद ही इस विद्यालय में अपना अच्छा परफॉर्मेंस दिया। इस विद्यालय में उन्होंने चैस जैसे इंडोर गेम और क्रिकेट जैसे आउटडोर गेम में भी कुशलता प्राप्त की। उन्होंने बताया कि उनके माता-पिता की आमदनी ज्यादा न थी परन्तु उनके पिता ने कभी भी उन्हें यह कमी महसूस नहीं होने दी। उन्होंने इन सब परेशानी के बावजूद भी हाईस्कूल की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की। बचपन से नेत्रहीन होने की वजह से समाज ने उनके साथ हमेशा भेदभाव बनाए रखा।
साइंस विषय के लिए कोर्ट तक गए।
वह बताते हैं कि हाईस्कूल में अच्छे अंकों के साथ पास करने के बाद उन्हें 11वीं में आर्ट्स विषय को लेने के लिए मजबूर किया गया जबकि वह विज्ञान जैसे विषय में अपनी पढ़ाई करना चाह रहे थे। परंतु उनकी नेत्रहीनता होने की वजह से एजुकेशन बोर्ड ने विज्ञान जैसे कठिन विषय में पढ़ने के लिए परमिशन नहीं दी।
परंतु श्रीकांत ने अपने विज्ञान जैसे कठिन विषय में अपनी पढ़ने की चाहत को बनाए रखने के लिए उन्होंने सरकार के विरोध में एक टीचर की मदद से कोर्ट में लड़ गए और कोर्ट में भी उन्हीं के पक्ष में फैसला हुआ, कि वह विज्ञान जैसे कठिन विषय को पढ़ सकते हैं। कोर्ट ने बताया गया कि शिक्षा सबके लिए एक समान और बराबर हैं इसमें किसी भी तरह की दृष्टिबाध्यता नहीं देखी जा सकती।
श्रीकांत ने विज्ञान विषय पढ़ने के लिए परमिशन तो प्राप्त कर ली परंतु इस फैसले के आते आते उनका 6 महीने तक का समय निकल गया और परीक्षा भी नजदीक आ गई थी। उसके टीचरों ने उनकी पढ़ने में पूरी मदद की। साइंस टीचर्स ने उन्हें साइंस के सभी नोट्स की ऑडियो रिकॉडिंग करके दी। उन्होंने अपने टीचर की ऑडियो रिकॉडिंग में बनाए गये नोट्स को सुन सुन कर तैयारी की और 11वीं में 98 प्रतिशत मार्क्स से पास होकर सभी आलोचकों का मुंह बंद कर दिया।
अमेरिका से एमआईटी की।
श्रीकांत की स्कूल की पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद उन्होंने देश के सर्वश्रेष्ठ IIT की पढ़ाई करने के लिए अप्लाई किया। जहां नेत्रहीन होने की वजह से उनको रिजक्ट कर दिया गया। परंतु उन्होंने अपने हिम्मत और विश्वास को बनाए रखा और अमेरिका के कुछ कॉलेजों की जानकारी प्राप्त करके उन्होंने अप्लाई किया। जिसमें से उनकी एप्लिकेशन एमआईटी, स्टैनफोर्ड, बर्कलो और कार्नेगी मलान में स्वीकृत हो गया। इन 4 कॉलेजों में से उन्होंने एमआईटी ( Massachusetts Institute of Technology ) को चुना और वहीं से अपनी पढ़ाई 2009 से लेकर 2013-14 तक पूरी की।
अपने लिए नहीं दुसरो के लिए सोचा।
श्रीकांत ने सफलता प्राप्त करने के लिए अपने नेत्रहीनता को कभी भी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उनका कहना है कि दुनिया उनकी तरफ देखते हुए कहती थी कि तुम जीवन में कुछ हासिल नहीं कर सकते इसके विपरीत वह दुनिया को सब कुछ कर दिखाने के लिए चुनौती दे देते थे।
श्रीकांत अमेरिका में अपनी MIT से पढ़ाई पूरी करने के बाद स्वयं ही अपना काम करने का विचार किया, क्योंकि उनके नेत्रहीन होने की वजह से अधिकतर जगहों में उनके साथ भेदभाव किया जाता था। इस विचार के साथ उन्होंने अपने जैसे दिव्यांग व्यक्तियों के लिए “समन्ती” के नाम से NGO की शुरुआत की।
उसके बाद उन्होंने ब्रेल प्रिंटिंग प्रेस और लाइब्रेरी पर काम करने के लिए पढ़ाई को प्रमोटेड भी किया जिसके लिए उन्होंने ब्रेल लिपि भाषा सीखी। वह अपने NGO के द्वारा 3000 से भी अधिक व्यक्तियों को शिक्षित कर चुके हैं।
बताया जा रहा है कि उन्होंने नेत्रहीन व्यक्तियों की समस्या को कम करने के लिए और उनकी जरूरत को पूरा करने के लिए सन 2012 में बौलांट इंडस्ट्रीज की स्थापना की।
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नेत्रहीन लोगो की टीम बना एक कमरे से किया स्टार्टअप।
बौलांट इंडस्ट्रीज ( BOLLANT Industries ) में उन्होंने ऐसे नेत्रहीन लोगो को रोजगार दिया जो कभी भी पढ़ नहीं सके। आज उनकी कंपनी साल का 50 करोड़ रुपए से भी अधिक का टर्नओवर कर रही है। वह बताते हैं कि उनकी यह कंपनी खाने पीने का सामान को कंज्यूमर के लिए पैकिंग करने का काम करती है। श्रीकांत की कंज्यूमर फूड पैकेजिंग कंपनी की शुरुआत एक कमरे में आठ नेत्रहीन व्यक्तियों के साथ हुई थी।
यह सभी लोग आपस में मिलकर प्रोडक्ट बनाते थे। हैरानी की बात यह है कि उनकी कंपनी में सभी व्यक्ति नेत्रहीन होने के साथ-साथ पढ़े लिखे भी नहीं थे। जल्दी ही उनकी कंपनी लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गई।
अब उनकी कंपनी के लिए धीरे धीरे फंडिंग की समस्या आने लग गई परंतु उन्होंने अपने विश्वास और हार न मानने वाले जज्बे को कायम रखते हुए प्राइवेट बैंकों और फंडिंग कंपनियों से अपनी कंपनी के लिए फंड जुटाकर काम को आगे बढ़ाते चले गए।
रतन टाटा और कई एंजल इन्वेस्टर्स की नजर श्रीकांत के बिजनेस मॉडल पर।
आज श्रीकांत ने पूरी दुनिया के सामने अपनी एक मिसाल पेश की है। जिसके लिए उनकी कंपनी में रतन टाटा ने भी निवेश किया है। आप को बता दे की रतन टाटा ने पिछले सालो में कई छोटे स्टार्टअप में और छोटी बड़ी कम्पनी में भी पैसे लगाए है। वे हमेशा यूनिक बिजनिस आईडिया पर काम करने वाले और डट कर मेहनत करने वालो की क़द्र करते है।
रतन टाटा के अलावा भी कई बड़ी हस्ती जैसे सतीश रेड्डी और श्रीनी राजू समेत कई दिग्गज इन्वेस्टर्स ने अपना पैसा श्रीकांत की कंपनी में इन्वेस्ट कर रखा है। हालांकि रतन टाटा ने इस बात का उल्लेख नहीं किया कि उन्होंने कितना पैसा इन्वेस्ट किया है। जल्द ही श्रीकांत की कंपनी 20 करोड़ की फंडिंग जुटाने की तैयारी में जुटी है।
अवार्ड्स।
बताया जा रहा है कि अपनी पढ़ाई के दौरान ही लीड इंडिया प्रोजेक्ट में भारत के पूर्व राष्ट्रपति A.P.J. Abdul Kalam के साथ काम करने का भी मौका मिला। हाल ही में उन्हें बेस्ट सोशल इंटरप्राइजेज ऑफ ग्लोब के अवार्ड से उन्हें ब्रिटेन के यूथ बिजनेस इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ने भी सम्मानित किया।
श्रीकांत का मानना है कि किसी भिखारी को दया करके पैसे देने से अच्छा है उसे समाज में मेहनत से कमाकर खाना सिखाओ और बेहतर जिंदगी जी सकें इस बात को बताओ।
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